Bandh ka Bandhi Hun Main-Cover Picture

 

मैं जीवित हूँ उसके बहने से

और थम जाता हूँ उसके थमने से

कि खुद को बंदी सा पाता हूँ मैं

जब देखता हूँ नदी को

बाँध से बंधे हुए।

 

जब नदी थी तो साथ चलते

ढूंढ लेता था बसेरा कहीं

अब दिशाहीन सा फिरता हूँ मैं

बिन मंज़िल बिन रास्ते

पिंजर सा कैद पाता हूँ खुद को

जब देखता हूँ नदी को

बाँध से बंधे हुए।

 

मनमौजी सी बहती थी वो

अब अनुशासन में रहती है

जब ठहर जाती है बेमन

अपनी व्यथा सुना देती है।

 

बाँध की बंदी सिर्फ नदी नहीं

पर वो संसार भी जो उससे शुरू हुआ

आज उसके रुकने से

अंत मेरा भी निश्चित हुआ। 

 

उसकी पीड़ा को समझने

उसके समक्ष बैठा हूँ मैं

बाँध से ना बंधकर भी

बंदी बाँध का बना हूँ मैं। 

 

    ~पारुल गुप्ता 


 

लेखिका दिल्ली आधारित पर्यावरण वकील और विंध्य बचाओ अभियान के कानूनी सलाहकार हैं।