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परियोजना_स्थल_वेलस्पन_पावर_प्लांट_मिर्ज़ापुर_सितम्बर_2013नयी दिल्ली: वेलस्पन एनर्जी के मिर्ज़ापुर में प्रस्तावित 1320 MW का तापीय विद्युत् योजना के ‘पर्यावरण स्वीकृति’ के खिलाफ विन्ध्य बचाओ अभियान के सदस्यों द्वारा दायर अपील में फैसला सुनाते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) के मुख्य खंडपीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा दी गयी पर्यावरण स्वीकृति को खारिज कर दिया है | साथ ही साथ कंपनी वेलस्पन एनर्जी को निर्देश दिया है कि परियोजना स्थल के क्षेत्र को वापस मूल स्वरूप में बहाल करें |

21 अगस्त, 2014 को दिए गए इस पर्यावरण स्वीकृति को विन्ध्य बचाओ अभियान के सदस्य देबादित्यो सिन्हा, शिव कुमार उपाध्याय और मुकेश कुमार ने ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दिया था जिस का अदालत में अधिवक्ता पारुल गुप्ता ने पैरवी किया |

न्यायाधीश साल्वी और विशेषज्ञ सदस्य रंजन चटर्जी के खंडपीठ ने 21 दिसंबर 2016 को यह फैसला सुनाया जो ग्रीन ट्रिब्यूनल के वेबसाईट पर 22 दिसंबर की शाम को उपलोड किया गया |

विंध्य बचाओ अभियान शुरू से ही इस परियोजना के लिए चयन किये गए स्थान को गलत ठहराते हुए कई अपूरणीय पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में पर्यावरण एवं मंत्रालय को स्वीकृति देने से पहले से ही लिखता आया है|

विंध्य बचाओ अभियान ने इस परियोजना को मिले मंजूरी के खिलाफ कई गंभीर आरोप भी लगाये थे जैसे-

पर्यावरण आकलन रिपोर्ट में तथ्यात्मक जानकारी को छुपाने और झूठी जानकारी उपलब्ध कराने, जनसुनवाई के आयोजन में किये गए कानूनी खिलवाड़, EIA अधिसूचना, 2006 की अनिवार्य प्रक्रियाओं की अनदेखी करना, जिन सब को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और अन्य राज्य एजेंसियों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया | विंध्य बचाओ अभियान ने यह भी आरोप लगाया था कि पर्यावरण आकलन के दौरान उस क्षेत्र में पाए जाने संरक्षित प्रजाति के जंगली जानवर जैसे भालू, तेंदुआ, चिंकारा, काला हिरन, मगरमच्छ इत्यादि के बारे में जान बूझ कर नहीं लिखा गया जिसके समर्थन में कई दस्तावेज और सबूत भी दिए गए थे | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलसचिव और मिर्ज़ापुर में स्थित राजीव गांधी दक्षिणी परिसर के 550 छात्रों ने भी इस परियोजना के मंजूरी मिलने से पहले मंत्रालय को पर्यावरण को होने वाली क्षति के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए इसे कहीं दूर ले जाने की बात मंत्रालय को पत्र लिख कर कही थी | यह परियोजना दक्षिणी परिसर के महज 7.5 किलोमीटर पर ही स्थित है और इस परिओजना के बन जाने से खजूरी बाँध के पानी पर अत्यंत प्रभाव पड़ता जिस पर पूरा परिसर निर्भर है|

ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले में दिखे कुछ ख़ास पर्यवेक्षण:

  • ...आवेदन पत्र और उससे जुड़े तमाम दस्तावेजों में छोटे से छोटे चूक से भी पर्यावरण एवं सतत विकास पर स्थायी एवं प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अगर दी गयी जानकारी भ्रामक है | (अनु 35 )
  • निश्चित रूप से आगमन-मार्ग, रेल लाइन एवं जल पाइपलाइन को जंगलों से हो कर ही गुजारना पडेगा, और चूंकी ये सब परियोजना के महत्वपूर्ण हिस्से है, प्रोजेक्ट कंपनी को वन भूमि के लिप्त होने कि जानकारी अपने पर्यावरण स्वीकृति के आवेदन पत्र में प्रत्यक्ष करना अनिवार्य था | (अनु 48)
  • जैसा कि हमने देखा कि पर्यावरण स्वीकृति के प्रस्ताव में वन भूमि भी लिप्त है, इसलिए ये कहना गलत है कि ‘वन अनापत्ति’ ‘पर्यावरण स्वीकृति’ के मानदंड में नहीं आता | (अनु 49)
  • तथ्यों से यह बात साफ़ है कि परियोजना स्थल जंगलों से घिरा हुआ है और परती भूमि भी मौजूद है जो कि यह दर्शाता है कि यहाँ मानवीय गतिविधि न्यूनतम है, और इसी वजह से वन्यजीवों के नज़रिए से इसको बहुत ही गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता थी.... तथ्यों से यह सामने आया है कि वन एवं वन्यजीवों से जुड़े इन सब अपवादों के गंभीरता के बावजूद मंत्रालय के विशेषज्ञ या फिर भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के किसी भी विशेषज्ञ द्वारा परियोजना स्थल का ज़मीनी दौरा नहीं किया गया| ऐसी स्थिति में इस मुद्दे पर इस परियोजना का विनियामक द्वारा मूल्यांकन संदिग्ध बन जाता है | (अनु 50)
  • अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा ये तर्क कि पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) में गंगा नदी और अपर खजूरी जलाशय पर पड़ने वाले संचयी (cumulative) और upstream (नदी के उपरी वाह क्षेत्र) एवं downstream (नदी के निचले वाह क्षेत्र) में आने वाले प्रतिस्पर्धी उपयोगों पर पड़ने वाले प्रभाव को EIA में शामिल नहीं किया गया –इस तर्क में वजन है | (अनु 53)
  • जहां तक जनसुनवाई की बात है विडियोग्राफी में लोगों के बीच बन्दूक लिए हुए लोगों कि मजूदगी भी प्रकट हुयी है.....ये पुलिसकर्मियों की ज़िम्मेदारी थी कि जनसुनवाई परिसर में प्रवेश करवाने से पहले उन लोगों के बंदूकों को अलग करती | बन्दूक जैसे हथियार लिए लोगों कि मौजूदगी से लोगों के दिल में भय पैदा होना अबाध्य है और यह उनके आज़ाद विचारों पर हावी होता है | इसलिए ये कहना बहुत मुश्किल है कि यह जन सुनवाई स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से आयोजित की गयी थी | (अनु 59)
  • संचित रूप में (cumulatively), पर्यावरणीय स्वीकृति के प्रस्ताव से सम्बंधित किये गए विचार और मूल्यांकन करने की पूरी प्रक्रिया दागी (tainted) पाया जाता है जिससे इसकी साख एवं विश्वसनीयता न्यायिक प्रक्रिया के उम्मीद पर खड़ी नहीं उतरती और जिसकी वजह से इस परियोजना को सतत बनाने के दिशा में सुरक्षा उपायों का प्रस्ताव देने की प्रक्रिया बहुत ही कठिन हो जाता है | (अनु 61)

इस मुक़दमे की पैरवी कर रहे वकील श्रीमती पारुल गुप्ता ने बताया, “पर्यावरण संस्तुति के प्रस्तावों में कम्पनिओं द्वारा सही और पूरी जानकारी देने के महत्व पर NGT ने विशेष रूप से इशारा किया है और साथ ही नियामक प्राधिकरण के आचरण पर भी सवाल उठाया है जिसका कर्तव्य है सही, स्वतंत्र एंड पारदर्शी रूप में आवेदनों का मूल्यांकन एवं विचार करना”|

विंध्य बचाओ अभियान के सदस्य एवं इस मुक़दमे के मुख्य याचिकाकर्ता पर्यावरणविद श्री देबादित्यो सिन्हा ने बताया, “हमलोग इस फैसले से बहुत खुश है, पर यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण भी है कि इन सब मुद्दों के लिए हमें उस नियामक प्राधिकरण के खिलाफ कानूनी लड़ाई लडनी पड़ती है जो कि नैतिक और कानूनी तौर पर इस देश में पर्यावरण का रक्षक है | इस फैसले से पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के कार्यक्षमता पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान खडा होता है जो कि आज सिर्फ एक मोहर लगाने वाली प्राधिकरण बन गयी है”

मिर्ज़ापुर के वरिष्ट पत्रकार, विंध्य बचाओ के सदस्य एवं इस मुक़दमे के सह-याचिकाकर्ता श्री शिव कुमार उपाध्याय ने बताया, “इस परियोजना के लिए चयनित जगह शुरू से ही गलत थी, और जिस तरह से इस परियोजना को सब अनुमतियाँ मिली है वह बेहद विवादास्पद रहे हैं | जब हमारी बात किसी ने सुनने या मानने से मना कर दिया तब आखिर में हमें न्यायालय का रास्ता चुनना पडा | हम सब इस फैसला का स्वागत करते है |”

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों का इस मुक़दमे में प्रतिनिधित्व कर रहे सह-याचिकाकर्ता मुकेश कुमार का कहना है कि “हम सब खुश हैं कि यहाँ की जैव-विविधता और पर्यावरण संरक्षित रहेगी | परियोजना स्थल को वापस अपने मूल स्वरुप में बहाल करने का फैसला अत्यंत ही प्रशंसनीय है|”

विंध्य बचाओ अभियान अपने सदस्यों को विशेष बधाई एवं धन्यवाद देना चाहता है जिन्होंने हमें शुभकामना और समर्थन दिया जिनमें प्रमुख नाम है डॉ. लक्ष्मी गोपाराजू, शिशिर कुमार, प्रीता धर, राघव सारस्वत, शेखर जैन, पंकज कुमार, विकास यादव, और राजीव गांधी दक्षिणी परिसर के सभी छात्र, शिक्षकगण, कर्मचारी एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान को |

फैसले की प्रति, फोटोग्राफ, दस्तावेज इत्यादि के लिए www.vindhyabachao.org/welspun पर जाने का कष्ट करें |


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