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Avinash K Chanchal | 22nd April, 2015 | http://www.gaonconnection.com/2015/04/10361/2015ed16-41/

किसान कर रहे हैं भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत जमीन अधिग्रहण की मांग

IMG-20150416-WA0004सोनभद्र। उन्नीस अप्रैल को दिल्ली में राहुल गांधी रामलीला मैदान में किसानों के हक के लिये हुंकार लगा रहे थे, ठीक उससे चार दिन पहले ही 14 अप्रैल को सोनभद्र के कन्हर बाँध से अपनी जमीन और गाँव को बचाने के लिये अनिश्चितकालीन धरना दे रहे लोगों पर उत्तर प्रदेश पुलिस गोली और लाठी चला रही थी। लेकिन वहां न तो टीवी का कोई कैमरा था न ही टीवी बाइट देने को आतुर नेता।

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कन्हर बांध उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है। कन्हर बांध परियोजना साल 1976 में शुरू की गयी थी, लेकिन कुछ साल बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। पिछले साल के अंतिम महीने में एक बार फिर से कन्हर बांध परियोजना निर्माण को शुरू किया गया, जिसके विरोध में स्थानीय ग्रामीणों ने निर्माण के खिलाफ धरना शुरू कर दिया। स्थानीय ग्रामीण नये भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत भूमि अधिग्रहण करने की मांग कर रहे थे जबकि सरकार ने बिना किसी नये सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण आकलन के ही निर्माण को हरी झंडी दिखा दी।

जारी है पुलिस का दमन

अनिश्चितकालीन धरना में शामिल लोगों पर 14 अप्रैल को हुई पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज में सुंदरी गांव का आदिवासी अकलू चेरी को गोली लगी, वहीं महिलाओं समेत कई लोग घायल भी हुए। अकलू को इलाज के लिये बीएचयू भेजा गया। इस घटना के आक्रोश में आसपास के ग्रामीण धरना स्थल पर जुटने लगे। 17 अप्रैल को विरोध कर रहे लोगों की संख्या 5 हजार के करीब पहुंच गयी। 18 अप्रैल को एक बार फिर पुलिस ने शांतिपूर्वक धरना दे रहे लोगों को खदेड़ने के लिये उन पर फायरिंग और लाठियों भांजनी शुरू कर दी। इस अफरातफरी में करीब 17 लोग घायल हुए। महिलाओं पर भी पुरुष सिपाहियों ने जमकर लाठी भांजी। घायल लोगों का इलाज स्थानीय दुधी अस्पताल में किया जा रहा है।

पुलिस-प्रशासन आंदोलन को दबाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है। पूरे इलाके को सील कर दिया गया है। 19 अप्रैल को दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक फैक्ट फाइडिंग टीम सोनभद्र पहुंची। टीम ने आरोप लगाया है कि उन्हें प्रशासन द्वारा डराया-धमकाया गया।

कन्हर बाँध परियोजना, 80 गांव और एक लाख ग्रामीण पर विस्थापन का खतरा

कन्हर सिंचाई परियोजना को सबसे पहले केन्द्रीय जल आयोग ने सितंबर 1976 में मंजूरी दी थी। यह परियोजना पगन और कन्हर नदी के किनारे गांव सुगवान, तहसील दुधी, जिला सोनभद्र में स्थित है। इस परियोजना में 3.003 किमी मिट्टी का बांध प्रस्तावित है। इस परियोजना को 1989 के बाद पूरी तरह छोड़ दिया गया था, लेकिन 5 दिसंबर से इसका निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है। सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के अनुसार इस परियोजना को वैध पर्यावरण क्लियरेंस और वन क्लियरेंस भी नहीं दिया जा सका है।

एक अनुमान के मुताबिक छत्तीसगढ़, झारंखड और उत्तर प्रदेश के करीब 80 गांवों पर कन्हर बांध की वजह से विस्थापन का खतरा आ गया है। इन गांवों में करीब 1 लाख निवासी हैं, जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं। इन आदिवासियों की जीविका इसी कन्हर के आसपास बसे जंगलों और जमीनों पर निर्भर है।

फिलहाल कन्हर में आंदोलनकारियों की गिरफ्तारियां जारी है, कुछ लोगों के गायब होने की खबरें भी बतायी जा रही है, चारों तरफ हल्ला मचने के बाद 20 अप्रैल को जिला अधिकारी ने प्रभावित गाँवों में बैठकें आयोजित करके विस्थापितों को उनका हक देने की बात कही है।

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फैक्ट फाइडिंग टीम की हिस्सा रही सामाजिक कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई कहती हैं, “यह हमला शर्मनाक है। पुलिस लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को खत्म कर रही है। एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के साथ जिस तरह का सुलूक किया जा रहा है वो निंदनीय है। विरोध को दबाने के लिये पुलिस निहत्थे लोगों पर लाठियां चला रही है, उन्हें झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है। महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया है”।

सोनभद्र का इलाका जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों से घिरा है और यही वजह है कि इस इलाके में इन संसाधनों के दोहन के लिये खूब सारी फैक्ट्रियां लगायी गयी हैं। इसके बदले में स्थानीय लोगों को विस्थापन,बेरोजगारी के सिवा कुछ भी नहीं मिल सका। सोनभद्र की हवा प्रदूषित हो चुकी है, पानी पीने लायक नहीं बचा है, पूरा इलाका रहस्यमय बीमारियों की जद में है। ऐसे में कन्हर नदी के आसपास बसे आदिवासियों की गलती सिर्फ इतनी है कि वो अपने गांव, जमीन, जंगल को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, अपने अधिकारों के लिये आवाज उठा रहे हैं, जिसके बदले उनके शरीर को कभी लाठियों से कभी गोलियों से, कभी जेल की कोठरियों से गुजरना पड़ रहा है।                                                                                                                                                                                                                                                      रिपोर्ट- अविनाश कुमार चंचल


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