VENHF logo-mobile

20th June, 2015 | Ashok Chowdhury | http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%B8/2015/06/20/%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%AA-%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AA#.VYtfdUYUeSA

कल ही ये खबर मिली कि उ0प्र0 के जनपद सोनभद्र में बन रहे कनहर बांध कनहर में आई बाढ़ के कारण रूक गया, बांध का काम ठप्प हो गया। सिद्धांत मोहन ने खूब लिखा है कि ‘‘ कनहर ने बदला ले लिया, बाढ़ में यूपी का सरकार का बांध ’’। एक ही बारिश में इस बांध की पोल खुल गई अभी तो मानसून पूरा बाकी है।

अब बांध बनाने का काम बाढ़ के कारण बाधित हो रहा है, यह तो सिंचाई विभाग और उनके कद्दावर मंत्रीजी  के लिए बड़ी अजीब समस्या पैदा हो गई है। हरित पंचाट (ग्रीन ट्रीब्यूनल ) के 7 मई 2015 के फैसले में नए निर्माण कार्यों पर रोक लगाने का आदेश को ताक में रखकर और बांध विरोधी जन आंदोलन पर तो गोली चलवाकर मंत्रीजी का अच्छा खासा काम चल रहा था और रुपया-पैसे का आने-जाने का बन्दोबस्त भी ठीक हो रहा था, पर अब ये नई मुसीबत कहां से आन पड़ी। मंत्रीजी को प्रकृति पर भी कुछ ऐसी प्रशासनिक कार्रवाई कर देना चाहिए, ताकि वे ऐसी जुर्रत दोबारा न कर सके। सामने पूरी बरसात का मौसम पड़ा हुआ है, सो कुछ करना तो है ही। प्रकृति माता तो कोई धरने में बैठी नहीं है, कि उस पर दबंगों से लाठी चलवा कर या पुलिस द्वारा गोली चलवा कर काम को शुरू करवा दिया जाये, इसलिए प्रकृति पर हमला और भी ताकतवर होना चाहिए। अब गोली से यह काम नहीं होगा, फिर तो तोप दागना पड़ेगा।

लगता है अब तोप दागने पर ही कनहर बांध को बांधा जा सकता है आदरणीय मंत्रीजीउ0प्र0 के मान्यवर सिंचाई मंत्री और कभी-कभी के कार्यवाहक मुख्य मंत्रीजी के लिए एक ठोस सुझाव है जवार भाटा से। कलकत्ता के हुगली नदी का एक वाकया याद आ गया जो अपने बचपन में हर साल बरसात के दिनों में देखने को मिलता था। सावन भादों के महीनो में जब समुन्दर में पानी बढ़ जाता था, तो हुगली नदी में भी पानी का लेवल बैकवाटर के चलते बहुत ऊपर आ जाता था और खास कर नदी में जब ज्वार आता था, तब तो घाट और जेटी की ऊँचाई तक पानी बहने लगता था। एक निश्चित समय में हर रोज़ जब ज्वार आने का वक्त होता था, तब नदी की पूर्वी साइड से एक ऊँची लहर आती थी जो कि 10 -12 फीट की और कभी-कभी तो 17 -18 फीट तक ऊंचाई तक पहुँच जाती थी। इसको बान आना कहते थे। बांग्ला भाषा में बान का मतलब बाढ़ है और हम सब मशहूर हावड़ा ब्रिज में खड़े होकर इस अभूतपूर्व दृश्य को देखते थे। दिलचस्प बात यह थी कि बान की यह लहरें कभी भी इतनी ऊंचाई तक पहुँचती नहीं थी जिससे कलकत्ता या हावड़ा शहर पानी में डूब जाएँ। ये इसीलिए नहीं होता था, क्योंकि जब समुन्दर से पानी की लहरें अंदर की तरफ आती थीं तो मोहना के पास डायमंड हार्बर के ईर्द गिर्द लहरों पर तोप दाग कर लहर को कम कर दिया जाता था, ताकि शहर तक आते-आते उसकी ऊंचाई इतनी न हो कि जिससे शहर डूब जाए। लेकिन ये कमाल का काम फौज की एक विशेषज्ञ टीम करती थी, जिसका दफ्तर फोर्ट विलियम में होता था। आजकल पता नहीं बान कोलकाता तक पहुँचती है कि नहीं, शायद नहीं। लेकिन पुराने रिकॉर्डों से विस्तृत जानकारी मिल जाएगी।

कनहर नदी के अड़ियलपने को डील करने के लिए मंत्रीजी को थोड़ी जानकारी और छानबीन करनी पड़ेगी कि कैसे तोप से बाढ़ की समस्या को हल करना चाहिए। इसके लिए एक विशेषज्ञों की टीम चाहिए, यानि फौज चाहिए, ये काम कायर और बुज़दिल यूपी पुलिस से नहीं हो पाएगा। एक और बड़ा प्रोजेक्ट भारत सरकार को पेश किया जा सकता है, बोफोर्स तोप के लिए, जिससे और भी अच्छा पैसे का लेन देन होगा और 2016 तक मंत्री जी का बांध पूरा करने का सपना भी पूरा हो जाएगा।
बाढ़ तो आती ही रहेगी, इसलिए कुछ लम्बी योजना की दरकार है। केवल लोगों पर ही गोली चलाने से परियोजना का काम पूरा नहीं होगा, क्योंकि ‘‘बहुत कठिन है डगर पनघट की’’। अब ये कनहर परियोजना कैसे पूरी होगी, ये तो भगवान ही जाने। अभी मंत्री जी दिल्ली में सूट बूट की सरकार के कारिंदे से पैसे मांगने गए थे, जिसमें खबरों को पढ़ कर मालूम हुआ कि कनहर परियोजना का नाम ही उनकी लिस्ट में नहीं था। ये बांध बनाने का पैसा कहां से आ रहा है, किस के नाम से कहां खर्च हो रहा है तो कैसे पूरी परियोजना पूरी होगी राम जाने। लेकिन जब ये घोटाला खुलेगा तब बड़ी बाढ़ आएगी। ऐसे ही कोई छोटा मोदी निकेलगा जो कि सरकार के लिए बाढ़ लाएगा जैसे इस समय एन0डी0ए0 की सरकार में बाढ़ आई हुई है।

तोप चलाने के लिए तारीख़ को भी देखना होगा, जब कनहर नदी घाटी के लोगों पर अंम्बेडर जंयती 14 अप्रैल और 18 अप्रैल 2015 को गोली दागी गई थी, तब असली मुख्यमंत्री विदेश में थे। तो ऐसा मौका फिर जल्दी देखना होगा मंत्रीजी को। गोली तो पुलिस के गुर्गों से उ0प्र0 में चलवा ली, लेकिन तोप दागने के लिए तो छतीसगढ़ जाना होगा, फिर तो मोटे मोदी के साथ अब तो खुल कर हाथ मिलाना ही होगा, तभी तो तोप दागने की तैयारी हो पाएगी। यहीं नहीं तोप दागने के लिए कुछ प्रशिक्षण भी लेना पड़ेगा, फोर्ट विलियम के तहखाने में जाना होगा, जहाँ पर पुराने दस्तावेज़ ढूँढ कर देखना होगा। इन दस्तावेज़ो को ढूँढते- ढूँढते एक साल तो लग ही जाएगा, फिर बांध तो एक साल में बनता नहीं, जैसा कि मंत्री महोदय ने 1 जून 2015 को ग्राम अमवार कनहर में घोषणा की थी लेकिन इसमें टाईम मिल जाएगा और पैसा खर्च करने का औचित्य भी मिल जाएगा।

एक आम कहावत है कि ‘‘ खेल खत्म पैसा हजम’’

अशोक चौधरी


Inventory of Traditional/Medicinal Plants in Mirzapur