जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जंगल के सृजन, प्रबंधन, उपयोग और संरक्षण ये चारों महत्वपूर्ण अंग हैं। इसमें किसी एक की कमजोरी वनों के सिमटने का प्रमुख कारण माना गया है। कमोबेश सोनभद्र जनपद के वनों के मामले में एक तथ्य स्पष्ट है और वह है संरक्षण के अभाव में वनों का लगातार कम होना। हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार वनों के प्रबंधन पर ध्यान नहीं दे रही है लेकिन आधुनिक समय में आबादी और उद्योग के लगातार बढ़ते दबाव के कारण वनों को बचा पाना व्यावहारिक रूप से मुश्किल लगने लगा है। यही कारण है कि देश की आजादी के बाद और मीरजापुर जिले के अलग होने के बाद जनपद में मौजूद वन या तो अतिक्रमण के शिकार हुए हैं या लकड़ी कटान के।
औषधीय पौधों से भरा है जनपद :
जिले के जंगलों में बेसकितमी लकड़ियां पाई जाती हैं। इसमे तेंदू, चिरौजी, महुआ, ढाक, आंवला, पलास, सागवन आदि महत्वपूर्ण पौधे पाए जाते हैं। इसके अलावा औषधीय पौधों में हर्रा, बहेरा भी पाया जाता है। आदिवासी जिला होने के चलते जब यहां पर एलोपैथ नहीं था तब पुराने पद्धतियों यानी जड़ी-बूटियों से लोगों का उपचार किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे जिले का विकास होने के साथ ही लोगों का रुझान एलोपैथ दवाओं के प्रति बढ़ता गया।
जमकर हुआ वनों का अतिक्रमण :
जनपद में सोनभद्र वन प्रभाग में 55 हजार हेक्टेयर, रेणुकूट वन प्रभाग में एक लाख 42 हजार हेक्टेयर व ओबरा वन प्रभाग में एक लाख 46 हजार हेक्टेयर में वन क्षेत्र फैला हुआ है। तीनों वन प्रभागों को मिलाकर जनपद में 3 लाख 43 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र का दायरा है लेकिन, पिछले एक दशक से पौधों की लगातार कटान होने के चलते इनका दायरा सिकुड़ता जा रहा है। वन भूमि पर उद्योग-धंधों तथा अवैध तरीके से मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढ़ती मांग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। इसलिए अब समय आ गया है कि हमें पौधारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। इससे की आने वाले समय में पर्यावरण से होने वाली नुकसान से बचाया जा सके।
जिले के तीनों वन प्रभागों में करीब दो दर्जन से अधिक वन्य जीव पाए जाते हैं। इसमे भालू, लोमड़ी, बंदर, चिकारा, काला हिरण, वन रोज, सांभर, चीतल, काकण, सूअर, मगर, लकड़बग्घा, सियार, वन गाय, मोर, जंगली बिल्ली, बिज्जू, तेंदूआ समेत अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं। लेकिन वनों के अंधाधुंध हो रहे कटान के चलते वन्य जीव भी अब भटक कर गांवों में पहुंच जा रहे हैं। इन पर शिकारियों की नजर पड़ते ही वन्य जीवों का शिकार कर लिया जाता है।
जंगलों में पौधारोपण के बाद वन विभाग की तरफ से नियमित रूप से पौधों की देखभाल की जाती है। पशु-पक्षियों की तरफ से पौधों का नुकसान न हो इसके लिए पत्थर की दीवार बनाकर उसको संरक्षित किया जाता है। वन विभाग के श्रमिकों द्वारा डेढ़ साल तक उसकी देखभाल की जाती है।
वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ़ भी रोकती हैं। पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। जिसकी मानवजाति को सांस लेने के लिए जरूरत पड़ती है। वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं। इसी प्रकार वन्यजीव भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारी जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग हैं।
वन प्रभाग अतिक्रमण वनों का क्षेत्रफल
रेणुकूट 1900 हेक्टेयर एक लाख 42 हजार
सोनभद्र 825 हेक्टेयर 55 हजार हेक्टेयर
ओबरा 350 हेक्टेयर एक लाख 46 हजार
वनों पर अवैध अतिक्रमण करने वालों को चिह्वित करते हुए कब्जा को हटाए जाने के लिए अभियान चलाया जाएगा। कई बार जिला प्रशासन के सहयोग से हुए कब्जे को खाली भी कराया गया है। पौधों के प्रति सभी को जागरूक होने की जरूरत है। ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके।
-संजीव कुमार सिंह, डीएफओ, सोनभद्र वन प्रभाग।
Source : https://www.jagran.com/uttar-pradesh/sonbhadra-three-thousand-hectares-of-forest-land-occupied-by-sonanchal-20127049.html