श्री ओ० पी० सिंह, पूर्व प्रभागीय वनअधिकारी, कैमूर वन्यजीव प्रभाग, लाइव संबोधित करते हुए
9 मई 2020 को “स्थानिक पक्षी दिवस” के अवसर पर विंध्य पारिस्थितिकी और प्राकृतिक इतिहास फाउंडेशन, मिर्जापुर द्वारा "उत्तर प्रदेश में गिद्धों की स्थिति" पर एक लाइव चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र के मुख्य वक्ता श्री ओ० पी० सिंह, पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी, कैमूर वन्यजीव प्रभाग रहे तथा संचालन श्री देबादित्यो सिन्हा, संस्थापक, विंध्य बचाओ ने किया। इस लाइव सत्र का आयोजन गूगल मीट पर दोपहर 12 बजे से हुआ।
श्री ओ० पी० सिंह ने चर्चा मे बताया की भारत में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिसमे से 6 प्रजातियाँ उत्तर प्रदेश मे देखे जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के महावीर स्वामी वन्यजीव अभयारण्य प्रदेश का सबसे छोटा अभयारण्य है लेकिन अपनी भगौलीक स्तिथि और वहाँ उपस्थित गुफाओं, पहाड़ियों आदि के कारण गिद्धों का पसंदीदा वास हैं। वहीं मिर्जापुर और सोनभद्र में स्थित कैमूर वन्यजीव अभयारण्य तथा चित्रकूट में स्थित रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य में भी गिद्ध पाए जाते हैं।
हैदराबाद के डेक्कन बॉर्डर्स के अध्यक्ष श्री मूर्ति द्वारा गिद्धों के जनसंख्या निर्धारण की विधि संबंधित चर्चा का जवाब देते हुए श्री सिंह ने बताया की उत्तरप्रदेश में लगभग 2000 गिद्ध मौजूद हैं, जो की वनकर्मी प्रश्नोत्तरी के माध्यम से पता लगाते हैं । उत्तर प्रदेश में गिद्धों के चाल पर नज़र रखने के लिए अबतक कोई भी गिद्ध को भू-टैग नहीं किया गया है वहीं श्री सुधांशु कुमार ने बताया की नेपाल का उपग्रह आधारित भू-टैग लगाया हुआ गिद्ध हाल ही में कुशीनगर से रेस्क्यू कर छोड़ा गया है।
उन्नाओ में गिद्धों की अधिक जनसंख्या वहाँ उपलब्ध चमड़े की कारखानों के कारण उपलब्ध भोजन है वहीं महावीर स्वामी वन्यजीव अभयारण्य के आस पास के क्षेत्रों में पशुओं की अधिक जनसंख्या है जो की उनके मरने से भोजन के रूप मे उपलब्ध होता है।
श्री देबादित्यो सिन्हा ने बताया की कैमूर वन्यजीव अभयारण्य में चार प्रजाति के गिद्ध पाए जाते हैं- सफेद पीठ वाले गिद्ध (Gyps bengalensis), दीर्घचुंच गिद्ध/भारतीय गिद्ध (Gyps indicus), लाल– सिर वाला गिद्ध/राज गिद्ध (Sarcogyps calvus) और इजिप्शियन गिद्ध (Neophron percnopterus)। गिद्धों के लिए समर्पित उत्तर प्रदेश का पहला जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र गोरखपुर वन प्रभाग के अंतर्गत फरेन्द्र तहसील में स्थापित किया जाएगा।
शिवांगी मिश्रा, शोधकर्ता, ने बताया की इजिप्शियन गिद्ध (Neophron percnopterus) एक अवसरवादी प्रजाति है जो रहने और खाने के लिए कोई विशिष्ट पसंद पर निर्भर नहीं रहता है तथा ज्यादातर मानव बस्तियों के आसपास ही अपना घोंसला बनाता है। इसलिए यह ज्यादा सफल है और बहुतायत में पाया जाता है।
गिद्धों के अस्तित्व के लिए क्या क्या संभावित खतरे हैं ?
इस पर चर्चा करते हुए श्री सिन्हा ने मिर्जापुर के घटना का जिक्र करते हुए बताया की आवारा कुत्ते कैसे गिद्धों से खाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसी क्रम में श्री ओ ० पी० सिंह ने बताया की यह सब एक चक्र के माध्यम से जुड़ा हुआ है सबसे आम उदाहरण है की पालतू जानवर जब जंगल में उपलब्ध चारा को खा कर समाप्त कर देते हैं तब हिरण और दूसरे शाकाहारी जानवर प्रतिस्पर्धा के कारण खेतों की तरफ जाने को विवश हो जाते हैं।
गिद्धों के लिए भोजन की अनुपलब्धता का मुख्य कारण मृत जानवरों की लाशों को जलाना या अन्य तकनीकी विधियों द्वारा निपटान है, अन्यथा आज से 30 -35 साल पहले वे आसानी से भोजन प्राप्त करते थे। गिद्धों के अस्तित्व के लिए उनके पारंपरिक रहवास का नष्ट होना, मवेशियों का कम उपयोग और डेकलोफेनक का अत्यधिक उपयोग भी मुख्य कारण है।
श्री प्रवीण कुमार जानना चाहते थे की बदलते परिवेश में जहाँ लोग मवेशियों का उपयोग नहीं कर रहे हैं वहाँ गिद्धों के संरक्षण के लिए हमें क्या करना चाहिए तथा हम अन्य वन्यजीवों के संरक्षण में भी आम लोगों को कैसे शामिल कर सकते हैं? इसी प्रकार के बहुत सारे प्रश्नों पर चर्चा किया गया, तथा पशु पक्षी प्रेमियों के लिए वन विभाग या विंध्य बचाओ द्वारा पक्षी सर्वेक्षण करने का कार्यक्रम तथा छोटे बच्चों के पाठ्यक्रम में वन्यजीव संरक्षण से संबंधित मुद्दों को शामिल करने का सुझाव भी प्राप्त हुआ।
इस कार्यक्रम में श्री रोहन शृंगारपुरे, सदस्य बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, श्री पीयूष सेखसरिया, श्री दीपक मणि त्रिपाठी, पंकज शुक्ला, डॉ रजनी श्रीवास्तव, प्रतिष्ठा अग्रवाल, गौरव पाल सिंह, वैभव श्रीवास्तव, तृप्ति सिंह, ऋचा सिंह, आदि कुल 30 लोग उपस्थित होकर चर्चा में हिस्सा लिया ।