मिर्ज़ापुर के जंगलों में मड़िहान , पटेहरा, हलिया, सुकृत, चुनार आदि वन क्षेत्र जैव विविधता के नज़रिए से बहुत ही संवेदनशील है। ये सभी वन क्षेत्र कैमूर अभयारण्य एवं चंद्रप्रभा अभ्यारण्य से समीप होने के कारण वन्यजीव गलियारों के रूप में बहुत अहम् भूमिका निभाते आ रहे हैं। मिर्ज़ापुर के जंगलों पर बढ़ते मानवीय दबाव और खनन का प्रभाव यहाँ के जानवरों पर सबसे ज्यादा पडा है। यहाँ के जंगलो की समृद्धि पर शोध कर रहे विन्ध्य बचाओ अभियान से जुड़े सदस्य नवेन्दु निधान ने मिर्ज़ापुर वन विभाग से यहाँ के वनयजीवों के जनगणना की जब रिपोर्ट मंगाई तो कई खुलासे हुए। वन विभाग से प्राप्त सूचना जहाँ हमें मिर्ज़ापुर के समृद्ध जैव विविधता जहां पर्यावरण प्रेमियों के लिए न केवल उत्साहवर्धक है परन्तु चिंताजनक भी है।
भालू का अस्तित्व खतरे में
गाँव दाढ़ीराम के ग्रामीणों का कहना है कि भालूयों और इंसानों के
बीच टकराव पिछले कुछ सालों से बड़ा है। भय अब इस हद तक है कि मड़िहान व इसके आसपास के गाँवों में घर की माहिलाएँ अब जंगलों में जलावन की लकड़ी लेने अब नहीं जाती। वन विभाग भी कई बार भालू हमले के चलते ग्रामीणों को मुआवज़ा दे चुका है।
विन्ध्य बचाओ को उपलब्ध करायी गयी सूचना में ये बात सामने आयी कि मरिहान वन क्षेत्र में भालूयों की संख्या जहां 2011 में 43 थे अब वहाँ 2013 के गणना में केवल 10 भालू ही बतायीं गयी हैं। अगर पूरे मिर्ज़ापुर की बात करें तो भालूयों की संख्या 2011 में जहां 211 थे, 2013 में केवल 112 ही बचे है।
शिकार न मिलने से तेंदुए भी हो रहे विलुप्त
जिन जंगलों में कभी तेंदुए राजकुमार के तरह विचरण किया करते थे, वहीँआज उनकी संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई। मिर्ज़ापुर के वन अब तेंदुयों के लिए उपयुक्त नहीं रह गए है। इसका प्रमुख कारण वनों से उन जीवों का सफाया होना है जो तेंदुयों के शिकार है जिसमें शाकाहारी पशुओ जैसे चिंकारा, सांबर इत्यादि जानवरों की अहम् भूमिका होती है। नीलगाय सहित सभी शाकाहारी पशुयों की संख्या भी बहुत तेज़ी से गिरी है ।
संख्या |
2011 |
2013 |
चिंकारा |
277 |
117 |
काला हिरन |
129 |
82 |
सांभर |
248 |
88 |
चीतल |
203 |
179 |
जंगली सूअर |
1331 |
537 |
नीलगाय |
3905 |
1832 |
(मिर्ज़ापुर के वनों में मुख्य शाकाहार जानवरों की संख्या, )
पटेहरा वन क्षेत्र में है अद्भुत जैव विविधता
वन विभाग के सूचना के अनुसार पटेहरा में कई ऐसे पशुओं की उपस्थिति मिली जिससे इस वन क्षेत्र को वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित कर देना चाहिए। बारासिंघा एवं मगरमच्छ जैसे कई ऐसे जानवर है जो देशभर में गंभीर ख़तरे से जूझ रहे है। बारासिंघा की संख्या पटेहरा में 12-15 ही है। यहाँ भालू की संख्या भी अच्छी खासी है और पानी की उपलब्धता के कारण मिर्ज़ापुर में पाए जाने सभी जानवर पटेहरा में मिलते है। बाकि वन क्षेत्रों के मुकाबले यहाँ के वन भी स्वास्थ्य है और मानवीय दवाब बहुत कम है।
डॉलफिन की संख्या नहीं बता पाया वन विभाग
गंगा में पाए जाने वाले डॉलफ़िन जिसे स्थानीय भाषा में सोंस के नाम से जाना जाता है भारत का राष्ट्रिय जलजीव भी है। डॉलफिन की उपस्थिति इलाहबाद से हावरा तक के गंगा नदी के हिस्सों में बताई गयी है। wwf ने भी मिर्ज़ापुर में डॉलफिन के मौजूदगी को अपने रिपोर्ट में लिखा है। ताज्जुब की बात ये है कि मिर्ज़ापुर वन विभाग के पास डॉलफिन के संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में सवाल ये है कि जिस वन विभाग को ये तक मालूम नहीं क़ि इनकी संख्या कहा पर और कितने है, क्या वो इस विलुप्तप्राय प्रजाति का संरक्षण कर पायेगा?
अनुसूचित प्रजाति होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं
भारत के वन्यजीव अधिनियम 1972 के अनुसूची 1 में दर्ज रहने के बावजूद वन विभाग भालू, चिंकारा, तेंदुए, गोह, मगरमच्छ एवं डॉलफिन जैसे कई जानवरों को संरक्षित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाते नहीं दिख रहा। जहां एक तरफ धुआंधार जंगलो की अवैध रूप से कटाई चल रही है, वही पत्थरों के खनन से भी जानवरों को सबसे ज्यादा नुक्सान हुआ है। एक सम्पूर्ण जंगल का जब विखंड हो जाता है तो वो वन्यजीवों के आवास एवं विचरण करने के लायक नहीं रहता, फलस्वरूप जानवर वहां रहना पसंद नहीं करते। विन्ध्य बचाओ मिर्ज़ापुर के वनों एवं वन्यजीवों को संरक्षण के लिए जल्द ही मुख्य वन संरक्षक कार्यालय को आग्रह करेगा एवं वन क्षेत्र के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में बी एच यु के इको वन क्लब के साथ जागरूकता अभियान भी चलाएगा। पटेहरा वन क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करवाने के लिए विन्ध्य बचाओ पूरी कोशिश करेगा। इससे स्थानीय ग्रामीणों को पर्यटन के माध्यम से रोज़गार भी मिलेगा, वन विभाग को रेवन्यू एवं वन्यजीवों को संराक्षण के साथ साथ मिर्ज़ापुर के जैव विविधता का देशभर में सम्मान भी मिलेगा।
संपर्क:
देबादित्यो सिन्हा एवं शिव कुमार उपध्याय
विंध्य बचाओ मंच
मो. 09540857338, 9455397072