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वन्यजीव पर्यावरण एवं प्राकृतिक धरोहर को संतुलित बनाए रखने में सहायक होते हैं, जंगली जानवर को देखते ही उन्हें दूर जाने का मौका दें

Tiger sketch
वन्य जीव हमारे पर्यावरण एवं प्राकृतिक धरोहर को संतुलित बनाए रखने में सहायक होते हैं और वे मानव को अकारण कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते, इसलिए वन्यजीवों की रक्षा व संरक्षण भी हमारी जिम्मेदारी है। इन्हे नुकसान पहुंचाना या इनका शिकार करना गैर कानूनी है, जिसपर सजा का प्रवाधान हैं। उक्त बातें विंध्य बचाओ समिति के संस्थापक देबादित्यो सिन्हा ने एक मुलाकात के दौरान बातचीत में कही। उनके साथ शिवकुमार उपाध्याय संस्थापक, सुधांशु कुमार कार्यक्रम अधिकारी पर्यावरण एवं वन्यजीव मीरजापुर, संतोष देव गिरी मीडिया सलाहकार मौजूद रहे।

मीरजापुर में वन-वन्यजीवों के संरक्षण पर चर्चा के दौरान दावा करते हुए बताया कि जिले के वन्य प्रभाग में एक सर्वे के दौरान अब तक 29 जंगली जानवरों के विभन्न प्रजातियों को देखा गया है, जो कैमरे में कैद हैं। जिनमें 11 ऐसी प्रजातियां हैं जिनका खोज डेढ़ वर्ष पहले हुआ। ज्यादातर वन्य जीव इंसान से डरते हैं, जिसमें वे डर बस हमला कर देते हैं। वन्य जीव को देखते ही इसकी सूचना तत्काल वन विभाग को देना चाहिए और जानवरों को बगैर घेरे उनसे दूर हट जाना चाहिए जिससे वे संरक्षित क्षेत्र (जंगल) में जा सके।तेंदुआ डरपोक होते हैं वह इसान को देखते ही दूर जाने का प्रयास करते है लेकिन घरे के कारण वे इंसान पर हमला कर देते हैं। एक शोध के अनुसार वे 400 किलोमीटर तक की जानकारी रखते हैं, जिन्हे दूर छोड़ने पर वे पुनः अपने स्थान पर आ जाते हैं।

मिर्जापुर क्षेत्र किसी जमाने में बाघ और चीता के लिए मशहूर था लेकिन अधाधुन शिकार और जंगलों की कटाई के चलते चीता भारतवर्ष से ही विलुप्त हो गए वहीं बाकी जांगली जानवरों की आबादी में कमी देखने को मिल रही है और कुछ प्रजाति मीरजापुर से विलुप्त हो गए। जिले में मौजूद कैमूर वन्य जीव अभ्यारण में भारत में विलुप्त प्राय गिद्धों की प्रजातियां भी मौजूद हैं। कैमूर क्षेत्र के आसपास बारहसिंघा जैसे जंगली जानवरों को भी देखा जाता है। मड़िहान तहसील के पटेहरा वन रेज में 2013 तक इसकी मौजूदगी के औपचारिक रिकॉर्ड भी है कई और वन्यजीव प्रजातियाँ जंगलों में मौजूद होने की संभावना है, जिन पर शोध अपेक्षित है। जैसे बाग, पैंगोलिन केयरकल इत्यादि।
 
मीरजापुर वन प्रभाग उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े बन प्रभागों में से एक है। भारतीय वन सर्वेक्षण 2019 के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य में वन की श्रेणी में आने वाले 14806 वर्ग किमी का 23 प्रतिशत हिस्सा मिर्जापुर (804 वर्ग किमी) एवम सोनभद्र (2540 वर्ग किमी) जिले में स्थित है। लेकिन वन विभाग में कर्मचारियों (स्टाफ) की भारी कमी के चलते जंगलों को निगरानी बहुत ज्यादा प्रभावित हुई है। रिजर्व फॉरेस्ट का क्षेत्र मड़िहान, सुकृत लालगंज, चुनार आदि है। सरकार द्वारा इन मार्गो से धीमी गति के हॉर्न और रफ्तार के लिए निर्देश लिखे होते है जिससे कोई जानवर के साथ जंगल में दुर्घटना ना हो और हॉर्न से उन्हें कोई परेशानी ना हो।

मीरजापुर वन प्रमाग विध्य परिदृश्य का एक आदर्श प्रतिनिधित्व है और पश्चिमी कैमूर परिदृश्य (रानीपुर वन्यजीव अभ्यारण्य, सोन घड़ियाल वन्यजीव अभ्यारण्य संजय दुबरी टाइगर रिजर्व और बघधारा वन्यजीव अभयारण्य) को पूर्वी कैमूर परिदृश्य (चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य और बिहार के कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य) से जोड़ता है। मीरजापुर वन प्रभाग एक वन्यजीव कॉरीडोर का भी काम करता है जिसे बाघ जैसे जानवर भी इस्तेमाल करते हैं। रानीपुर वन्यजीव अभ्यारण्य (उ० प्र०) कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य (बिहार) प्रस्तावित बाघ आरक्षित क्षेत्र हैं।  जंगली क्षेत्रों पर कब्जा कर इमारत, फार्म हाउस, टाउनशिप, बिजली घर, खनन इत्यादि का निर्माण। इन सब से एक तरफ वन्यजीवों के पर्यावास समाप्त हो रहे है तो वही दूसरी वन्यजीव कॉरिडोर भी टूटते जा रहे हैं। लगातार खनन, उद्योग, और जंगल मार्ग से जाते हुए सड़कों ने वन्य जीवों के संरक्षण में खतरा पैदा कर दिया है, जिसके कारण उनमें कमियां आंकी गई है।
 
भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के अनुसूची 1 के अधीन पाए जाने वाले जंगली जानवर स्लॉथ भालू यानि रीछ, तेंदुआ (गुलदार), एशिआई जंगली बिल्ली, रस्टी बिल्ली, भेडिया,चिंकारा, काला हिरण, मोर, गोह, मगरमच्छ, इनके अलावा मीरजापुर के जंगलों में लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, सियार (गीदड़) सांभर, चीतल (हिरण) सुर्ख नेवला, धूसर नेवला, काला मुश्कविलाव, छोटे भारतीय मुश्कविलाव, नीलगाय, जंगली सूअर, साही, खरहा, पाँचधारीदार गिलहरी, लंगूर, बंदर, पेंटेड जंगली मुर्गी, लाल जंगली मुर्गी, और बहुत से पक्षी भी पाए जाते हैं।
 

श्री मंगल तिवारी की यह लेख लखनऊ से प्रकाशित कर्मक्षेत्र इण्डिया (राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक) के शनिवार 07 मार्च से - 13 मार्च, 2020,संस्करण के पृष्ठ - 06 पर प्रकाशित हुआ है।

Inventory of Traditional/Medicinal Plants in Mirzapur