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स्लॉथ भालू

जंगलों पर पड़ने वाले मानवीय प्रभाव जैसे कि अतिक्रमण, खेती, खनन, वनों की कटाई, शिकार से वन्यजीवों के आवास और उनके अनुकूलन क्षमता पर बहुत खराब असर पडा है। ऐसे में जंगली जानवर और आस-पास के ग्रामीणों में अक्सर आमना-सामना हो जाता है जिसमें तेंदुआ और भालू सबसे आम है । अभी कुछ हफ्ते पहले मिर्ज़ापुर के मडिहान क्षेत्र के एक गाँव में बाघ के आ जाने से हडकंप मच गया था। ग्रामीण घबरा कर उस बाघ को घेर कर मारने के लिए पहुँच गए, और जब बाघ को घेर लिया तो उसने भी घबराकर 2 लोगों पर हमला बोल दिया और फिर जंगल में चला गया। गौर करने वाली बात यह है कि जंगली जानवर इंसानों से वैसे ही बहुत डरते है और आपके बिना कुछ किये ही वो जंगल में भाग जायेंगे बशर्ते आप उनको उत्तेजित न करे।

ज़रूरी है वन्य-जीवों के व्यवहार को समझना

ज़्यादातर जंगली जानवर रात में ही निकलते है परन्तु कभी-कभार दिन में भी इनसे भेंट हो सकती है जैसे कि आप जंगल में लकड़ी बीनने या भेड-बकरी चराने गए हुए हों, और अचानक कोई जानवर झाडी में बैठा मिल जाए ।  इस तरह के आकस्मिक आमना-सामना का नतीजा कई बार दुर्घटना बन सकती है जिसमें जानवर और इंसान दोनों क्षतिग्रस्त हो सकते है। थोडा बहुत सूझ-बूझ, वन्यजीवों के व्यवहार का ज्ञान और धैर्य रखने से आप ऐसे आमना-सामना वाले स्थिति को किसी गंभीर दुर्घटना में तब्दील होने से रोक सकते है।

दक्षिणी-पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली जिलों में भालू और इंसान के बीच मुठभेड़ की घटनाएँ बारंबार सुनने को मिलता है। उत्तर प्रदेश के विंध्य क्षेत्र एवं इसके आस-पास में पाय जाने वाले भालू की प्रजाति को ‘स्लॉथ भालू' कहा जाता है। यह बेहद शर्मीले मिज़ाज़ के होते हैं और इंसानों से दूरी बनाकर रहते हैं। यह दिन के समय में अक्सर गुफाओं और झाड़ियों में सुस्ताते है। साधारणत: यह भालू सूरज ढलने के बाद ही खाने-पीने निकलते है, पर ज़रूरत महसूस होने पर यह दिन में भी निकल सकते है। यह मुख्यतः दीमक और चींटीओं से ही अपना पेट भर लेते हैं और ऐसा करने वाले यह दुनिया का एकमात्र भालू की प्रजाति है । जंगली बेर और महुआ के फल इनके बेहद पसंदीदा आहारों में से एक है। और अगर इनको कहीं मधुमक्खी का छत्ता दिख जाए तो यह पेड़ पर चढ़ जाते हैं और शहद के साथ साथ मधुमक्खिओं को भी चट कर जाते हैं।  ऐसे में हम इंसानों को इनसे डरने की ज़रूरत नहीं है क्यूंकि भालू जंगल में रह कर ही अपनी सारी ज़रूरतें पूरी करने में सक्षम है । अगर इनके पर्यावास के साथ छेड़छाड़  ना की जाए तो यह जानवर शायद ही कभी जंगलों से बाहर आने पर मजबूर हों ।

जंगली जानवरों को उत्तेजित बिलकुल ना करें

मिर्ज़ापुर में हाल ही में हुए एक अध्ययन से मालूम चला है कि अधिकांश भालूओं से मनुष्यों का मुठभेड़ जंगल में लकड़ी इकठ्ठा करते समय, नदियों या तालाबों  के किनारे शौच करते समय या फिर भोर में महुआ के फल बीनते समय होते हैं । इनमें से ज़्यादातर घटनायें जिनमें मनुष्यों को नुक्सान पहुंचा हो उनमें यह पता चला है कि लोगों को मालूम नहीं था कि भालू सामने आ गया तो उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। हड़बड़ी में लोग ऐसा कुछ कर बैठते है जिससे जानवर उत्तेजित होकर हमला कर देते है। कई बार कुछ असामान्य परिस्थितिओं में इंसानी मृत्यु भी हुई है तो कई घटनाओं में भालूओं को भी मौत के घात उतारा जा चुका है। यह बात समझना बहुत ज़रूरी है कि भालू से आपको कोई ख़तरा नहीं है, इसलिए घबराने की ज़रूरत नहीं है। भालू या कोई भी और जंगली जानवर अपनी आत्म-रक्षा में ही हमला करते है, और ज़्यादातर ऐसा तब होता है जब हम उन्हें डराने की कोशिश में उन्हें उत्तेजित कर देते हैं । अच्छी बात यह है कि अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो इससे आप और जानवर दोनों सलामती से रह सकते है।

निम्न बातों का रखें ध्यान

  1. जंगलों में कोशिश करे अकेले कभी ना जाएँ, और समूह में हमेशा एक दुसरे से करीब रहे। अँधेरी झाडी, पथरीले टीले, पहाड़ी और गुफाओं के नज़दीक ना जाए, हो सकता है वहाँ भालू या कोई और जानवर विश्राम कर रहा हो। सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद जंगल में लकड़ी इकठ्ठा करने ना जाए । जंगली रास्तों से गुजरते समय आवाज करते रहे जिससे अगर आसपास कोई जानवर हो तो आपसे सचेत होकर स्वयं ही दूर चला जाए।  
  2. अगर आपको सामने से भालू आता दिखे तो ना शोर मचाएं और ना ही तेज भागने की कोशिश करें । कोशिश करें भालू की तरफ मुँह करते हुए पीछे की ओर चलते रहे जब तक कि एक सुरक्षित दूरी ना बन जाए।  ऐसे में यह भी ध्यान रखें की भालू से सीधे आँख से आँख ना मिलाए लेकिन उसकी हरकतों पर नज़र बनी रहे।   हड़बड़ी बिलकुल न करें, इससे जानवर घबरा सकता है। अगर समूह में है तो एक दूसरे से सटकर रहें, हमले की संभावना कम होगी। आपस में बहुत ही धीरे से बात करें और अगली रणनीति बनाये।  सबसे पहले बच्चों और शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों  को सुरक्षित करें।  
  3. अगर आप अकेले है और भालू हमला कर देता है तो उससे लड़ने की कोशिश ना करें और ना ही भागने की कोशिश करें। अपने दोनों हाथों को कंधे के पीछे ले जाकर इस तरह फंसायें कि आपकी दोनों कोहनी आपके माथे के सामने रहे और आपकी गर्दन आपके हाथों के बनाए सुरक्षा-कवच  से ढका रहे । साथ ही साथ अपने दोनों घुटनों को माथे के करीब ले आकर अपने आप को  गेंदनुमा बना लें और एक दिशा में लेट जाये।
  4. इस बात का हमेशा ध्यान रखिये भालू आपको शिकार करने के लिए हमला नहीं करता है। वह ज़्यादा से ज़्यादा आपको नाखून मारेगा या दांत से काटेगा सिर्फ ये जांचने के लिए कि आपसे उसे ख़तरा तो नहीं है । इसलिए इस बात का ध्यान रखें की एक बार भालू ने हमला कर दिया तो हिलना डुलना बंद कर दें और गेंदनुमा मुद्रा में ही पड़े रहें।  भालू आपको नाखूनों से वार करने के बाद स्वत: ही चला जाएगा। तुरंत बाद न बैठे और न ही खड़े हों, इससे आप पर फिर से हमला हो सकता है। निश्चित कर लें कि भालू दूर चला गया है उसके बाद ही उठे और मदद के लिए देखें ।
  5. अगर गाँव के आसपास कभी भालू या कोई जंगली जानवर दिख जाए तो अधिकतर संभावना यह है कि वह जानवर अपने आप जंगल में वापस चला जाएगा। अगर लगे कि जानवर ख़तरा बन सकता है तो तुरंत वन विभाग को सूचित करें और बाकी लोगों को भी सचेत रहने के लिए बोलें । उसको घेरने की कोशिश ना करें, और ना ही उस किसी भी तरह के हथियार से हमला करें ।

ज़रूरी नहीं  कि यह सारे उपाय सही साबित हो और यह परिस्थिति पर बहुत ज़्यादा निर्भर करता है कि आपका सामना अगर भालू से हो गया तो आपको क्या करना चहिए। हालांकि इन सभी उपायों को अगर ध्यान में रखें तो हो सकता है आपको नुक्सान कम हो। स्लॉथ भालू वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित प्रजाति है और आपके द्वारा अगर इसको क्षति पहुंचती है तो आपके खिलाफ कानूनी कारवाई भी हो सकती है। जंगली जानवरों द्वारा किये गए नुक्सान पर वन विभाग द्वारा मुआफज़ा भी दिया जाता है।


 

लेखक विंध्य बचाओ अभियान से जुड़े पर्यावरणविद हैं एवं मिर्ज़ापुर में भालूओं के संरक्षण पर काम कर रहे है। इस आलेख का एक उपांतरित संस्करण पत्रिका द्वारा 5 मई, 2017 को प्रकाशित किया गया है।


Inventory of Traditional/Medicinal Plants in Mirzapur