VENHF logo-mobile

forest fires dainik bhaskar 25april2021
 

उत्तराखंड, ओडिशा से लेकर मप्र के कई जंगलों में आग लगी हुई है। इस मौसम में जंगलों में आग की घटनाएं सामान्य होती हैं, लेकिन गर्मी के पूरे चरम पर पहुंचने से पहले ही इन घटनाओं में असामान्य बढ़ोतरी चिंताजनक है।

जंगलों में लगने वाली आग अब एक महत्वपूर्ण वैश्विक घटना बन चुकी है जिसकी वजह से हर साल विभिन्न देशों को पर्यावरणीय क्षति के साथ-साथ भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। पिछले कुछ सालों के दौरान जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं में एकाएक तेजी देखने को मिली है और ये घटनाएं अब एक तरह से वार्षिक आपदाओं में तब्दील होती दिख रही है। भारत के जंगल भी इसका तेजी से शिकार हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर वनों की निगरानी रखने वाली संस्था- ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के अनुसार इस साल 4 जनवरी से 12 अप्रैल 2021 के बीच करीब 100 दिन में ही सिर्फ भारत में ही जंगलों में आग के 15,170 मामले सामने आ चुके हैं जो पिछले वर्ष की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, असम और बिहार को जंगली आग से प्रभावित शीर्ष पांच राज्य बताया गया है।

जंगलों की आग और जलवायु परिवर्तन का दुष्चक्र ...

भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान के एक शोध के अनुसार मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश के वे सभी इलाके जो अग्नि संवेदनशील क्षेत्र के रूप में पहचाने गए हैं, उन जगहों पर पिछले कुछ सालों में वर्षा क्रमश: कम होती पाई गई है। अत: जलवायु परिवर्तन हमारे मौजूदा जंगलों को सूखा बनाने के साथ ही और तनावपूर्ण स्थिति में ले जा रहे हैं जिससे जंगलों में आग लगने की आशंका पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई है। अब होता यह है कि जब जंगलों में आग लगती है तो पेड़ों में सालों से बंद पड़े कार्बन के स्रोत ग्रीन हाउस गैस में तब्दील हो जाते हैं। जाहिर सी बात है, इस ग्रीन हाउस गैसों से ग्लोबल वार्मिंग को भी और भी बढ़ावा मिलता है। जंगलों में यह दुष्चक्र बढ़ता ही जा रहा है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर सरकारी पैनल द्वारा किए गए बीस वर्षों के अवलोकन से पता चलता है कि एशिया के जंगलों में आग लगने के मामलों में इतनी तेज बढ़ोतरी का एक संबंध पर्यावरणीय तापमान में वृद्धि, वर्षा में गिरावट और भूमि के उपयोग में आई तेज वृद्धि से भी है।

जंगल की आग पर नियंत्रण कैसे हों?

अगर भारत की बात करें तो जंगलों में लगने वाली आग से निपटने के लिए वन विभाग एवं आपदा प्रतिक्रिया बल कार्यरत रहते हैं। हालांकि, आग नियंत्रण के लिए अपनाए गए ये पारंपरिक तरीके पुराने पड़ गए हैं। इनसे जंगली आग की घटनाओं पर काबू पाना अक्सर मुश्किल हो जाता है। इसलिए उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक और जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम के माध्यम से जंगली आग पर समय रहते कार्रवाई की जा सकती है। भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान ने 2019 में ‘फायर अलर्ट सिस्टम’ के अंतर्गत ‘बड़े वन अग्नि निगरानी कार्यक्रम’ की शुरुआत की है जिसमें उपग्रह की मदद से रियल टाइम बड़े जंगलों में आग की निगरानी की जाती है। हालांकि इसके बावजूद मानव जनित आग लगने की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

भारत में क्या हैं सजा का प्रावधान?

भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अंतर्गत आरक्षित वनों में आग लगाना या किसी वस्तु को जलता छोड़ना जिससे वन को खतरा हो, एक दंडनीय अपराध है। इसके लिए छह महीने तक की जेल, एक हजार रुपए जुर्माना, आग लगने से जंगल को हुए नुकसान की भरपाई को वसूलने के साथ-साथ उस व्यक्ति पर चारागाह या वन उपज के सभी अधिकारों को स्थगित करने का प्रावधान है।

जंगलों में आग क्या फायदेमंद भी है?

जंगलों में आग दो तरह से लगती है। एक प्राकृतिक रूप से जो आमतौर पर आसमान से बिजली के गिरने या बहुत ज्यादा गर्मी में पेड़ों के पत्तों के आपस में घर्षण के कारण लगती है। यह जंगली आग प्राकृतिक चक्रों में इस वजह से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है :

- जैव विविधता संरक्षण, घास के मैदानों एवं झाड़ीनुमा पर्यावासों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है।

- प्राकृतिक तौर पर लगी जंगली आग पुरानी वनस्पति को साफ कर मिट्टी को पोषक तत्व लौटाती है।

- इससे सूर्य के प्रकाश को वन तल तक पहुंचाने में मदद होती है जिस वजह से छोटे पौधों, झाड़ियों एवं घास को उगने व बीजों के विकास में मदद मिलती है जो वन्यजीवों के पोषण के लिए बहुत जरूरी है।

कब होती है नुकसानदेह?

समस्या तब पैदा होती है जब जंगल में लगने वाली आग मानव जनित होने के कारण बेकाबू हो जाती है और तबाही का कारक बन जाती है। एक अनुमान के मुताबिक हाल ही के समय में दुनियाभर के जंगलों में लगने वाली आग की 75 फीसदी घटनाएं मानव जनित होती हैं, वहीं भारत में ऐसे मामले 95 फीसदी हैं। इसमें इंसानी लापरवाही प्रमुख कारण है जैसे जंगलों में महुआ या तेंदू पत्ता बीनने गए और अनजाने में बीड़ी या सिगरेट जलाकर फेंक दी। तेंदू पत्ते की छंटाई के लिए स्थानीय समुदायों द्वारा नियंत्रित आग का इस्तेमाल भी किया जाता है जिससे कई बार आग नियंत्रण से बाहर चली जाती है। कभी-कभी जंगलों को साफ करने, शिकार करने या चारागाह को बढ़ाने के लिए भी स्थानीय निवासियों द्वारा जानबूझकर गैरकानूनी ढंग से जंगलों में आग जलाई जाती है।

जंगलों में आग की दो बड़ी घटनाएं...

- 1 जून 1950 को ब्रिटिश कोलम्बिया (कनाडा) के चिनचागा में आग लगने की शुरुआत हुई थी जो जल्दी ही बेकाबू हो गई। करीब 5 महीने तक जंगल लगातार जलते रहे। इस पर 31 अक्टूबर तक काबू पाया जा सका। तब तक 3 लाख एकड़ से भी ज्यादा जंगल साफ हो गए थे।

- आग की दूसरी बड़ी घटना 6 मई 1987 को उत्तर-पूर्व चीन के ग्रेटर किंघम माउंटेन रेंज और साइबेरियाई की सीमाओं पर घटित हुई थी। इस पर 2 जून को काबू पाया जा सका। इसमें भी करीब 3 लाख एकड़ जंगलों को नुकसान पहुंचा था। इसमें 200 से अधिक लोगों की मौत भी हुई थी।

(स्रोत : गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स)

- 15% भू-भाग जंगलों में लगने वाली आग से प्रभावित हैं भारत में जिनमें 348 जिले शामिल हैं।

- 70% आग मध्य भारत के पहाड़ी इलाके एवं दक्कन पठार में लगती है (कुल लगने वाली आग के क्षेत्र के अनुसार)

- 12.5% क्षेत्र पूर्वोत्तर राज्यों में है जहां जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती हैं।

- 25% हिस्सा जंगलों में लगने वाली आग का है कुल आग आधारित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में।

(स्रोत : भारतीय वन सर्वेक्षण संस्था की रिपोर्ट)

- देबादित्यो सिन्हा, संस्थापक, विंध्य ईकोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री फाउंडेशन

 

स्रोत: दैनिक भास्कर, 25 अप्रैल 2021 (रविवार विशेष)- https://www.bhaskar.com/magazine/rasrang/news/why-are-our-forests-burning-128441188.html


Inventory of Traditional/Medicinal Plants in Mirzapur