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चुनार के पास जखमी हालत में मिला था यह दुर्लभ हिरण
तराई एवं कछार क्षेत्रों में पाया जाने वाला हिरण का एक ख़ास प्रजाति जिसे “पाढ़ा” या “हॉग हिरण” बोलते हैं, को अदलहाट थाना क्षेत्र के कोलना गाँव में आज सुबह जख्मी हालत में पाया गया। ग्रामीणों की माने तो जंगल से जख्मी हालत में हिरण जैसा एक जानवर गाँव की तरफ आ गया था जिसे आवारा कुत्ते परेशान कर रहे थे। ग्रामीणों ने इस वन्यजीव को कुत्तों से छुड़वाया एवं पुलिस और वन विभाग को सूचना दिया।
गंगा के कछार पाढ़ा का प्राकृतिक आवास स्थल है। मिर्ज़ापुर में इसका पुनराविष्कार उत्तर प्रदेश के वन्यजीव संरक्षण की दिशा में बहुमूल्य क्षण है। लॉकडाउन के चलते मानवीय गतिविधि कम होने से इस तरह के दुर्लभ जीव अब आसानी से दिखने लगे है। इससे यह बात भी साबित होती है कि मिर्ज़ापुर में अभी भी कई दुर्लभ प्रजातियों के वन्यजीव सुरक्षित निवास कर रहे है, जिनके बारे में शोध करने की आवश्यकता है।
जखमी हालत में पाढ़ा। ग्रामीणों ने पुलिस एवं वन विभाग को सूचित किया (फ़ोटो- संतोष गिरी/विंध्य बचाओ)
प्राथमिक उपचार के बाद चुनार रेंज अधिकारी के संरक्षण में पाढ़ा (फ़ोटो- कार्यालय प्रभागीय वनाधिकारी- मिर्जापुर)
क्या कहा विशेषज्ञों ने?
प्रभागीय वनाधिकारी मिर्ज़ापुर- श्री राकेश चौधरी ने चुनार रेंज के वन कर्मियों के प्रतिबद्धता को सराहा। उन्होंने कहा “जिले में पहली बार हॉग डियर के मिलने से मिर्ज़ापुर वन विभाग के सभी कर्मचारी उत्साहित है। गंगा के कछार एवम घास के मैदान इस दुर्लभ प्रजाति के हिरन का प्राकृतिक पर्यावास है। इसके पर्यावास के सर्वेक्षण का कार्य प्रगति पर है। चुनार वन रेंज अधिकारी एस. पी. ओझा के संरक्षण में फिलहाल इस हॉग डियर का इलाज किया जा रहा है एवम पूर्णत स्वस्थ होने के बाद ही इसे इसके प्राकृतिक पर्यावास में छोड़ा जाएगा।”
वरिष्ठ वन्यजीव विशेषज्ञ -डॉ फैयाज खुदसर, मिर्जापुर में पाढ़ा के देखे जाने पर खुशी जाहीर करते हुए कहा की “मादा शिशु पाढ़ा का दिखाई देना इस बात का संकेत है कि यह प्रजाति अपना ऐतिहासिक-भौगोलिक वास क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर रही है। मिर्ज़ापुर वन प्रभाग के कछार का तेजी से मूल्यांकन और घासके मैदानों का प्रबंधन हॉग हिरणों की आबादी को पुनः बहाल करने में मदद कर सकता है। उत्तर प्रदेश वन विभाग को गर्व के साथ इसके पर्यावास के प्रबंधन एवं निगरानी की पहल करनी चाहिए।”
वरिष्ठ संरक्षणकर्ता एवं राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य - प्रेरणा बिन्द्रा ने इस मौके पर कहा कि “हॉग हिरण-एक संकटग्रस्त प्रजाति है जिसकी आबादी में भारी कमी आ रही थी । ऐसे में यह एक स्वागत योग्य समाचार है जो यह दर्शाता है कि इस दुर्लभ प्रजाति की पृथक आबादी अभी भी गंगा नदी के कछार क्षेत्रों में रह रही है जो इस क्षेत्र के महत्व को और बढ़ाती है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार सरकार को मिल कर न केवल हॉग हिरण बल्कि अन्य दुर्लभ प्रजातियों के पर्यावास की पहचान करके सुरक्षित करनी चाहिए।"
मिर्जापुर वन विभाग में है और भी कई दुर्लभ प्रजाति
मिर्ज़ापुर वन प्रभाग के मड़िहान, सुकृत एवं चुनार वन रेंजों को वन विभाग द्वारा पहले ही स्लॉथ भालू संरक्षण क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जा चुका है। 2018 में वन विभाग तथा विंध्य पारिस्थितिकी एवं प्राकृतिक इतिहास संस्थान द्वारा खास कैमरों की मदद से करवाए गए एक सर्वेक्षण में 11 नई वन्यजीव प्रजातियों को मिर्ज़ापुर वन प्रभाग में खोजा गया था जिसमें कई प्रजाति उत्तर प्रदेश में पहली बार मिले थे।
बाघ, तेंदुआ, भेड़िया जैसे कई वन्यजीवों के लिए भी मिर्ज़ापुर के वन प्रख्यात है। इसका मुख्य कारण यहां के जंगलों में शाकाहारी जानवर जैसे चीतल, सांभर, बारासिंघा, काला हिरन, चिंकारा, जंगली सूअर ईत्यादी की मौजूदगी है। हालांकि मिर्ज़ापुर के जंगल धीरे धीरे खनन और कब्जों के वजह से समाप्त होते जा रहे है। वन विभाग में कर्मियों की कमी के चलते जंगलों की देख-रेख में भी परेशानी आ रही है जिससे शिकारियों का मनोबल बढ़ा हुआ है।
“पाढ़ा” (हॉग हिरण) के बारे में सामान्य तथ्य
साधारण नाम - पाढ़ा / Hog Deer
वैज्ञानिक नाम - Axis porcinus (एक्सिस पोर्सिनस)
मूल निवासी: बांग्लादेश; भूटान; कंबोडिया; भारत; नेपाल; पाकिस्तान
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के दिसंबर 2014 के आकलन के अनुसार संकटग्रस्त जातियों की लाल सूची जिसे “रेड डाटा सूची” भी कहा जाता है में इसे “संकटग्रस्त” (Endangered) श्रेणी मे रखा गया है।
- पाढ़ा को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के सूची III के तहत संरक्षित किया गया है।
- वन्यजीवों और उनके अंगों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से सुरक्षा हेतु इसे CITES के परिशिष्ट में स्थान प्राप्त है।
- पाढ़ा का प्राकृतिक वास पाकिस्तान से लेकर उत्तरी तथा पूर्वोत्तर भारत, दक्षिणी चीन तक और मुख्य भूभागीय दक्षिण पूर्वी एशिया के एक बड़े हिस्से तक फैला था।
- शिकार एवं वास स्थलों के नष्ट होने से अब यह कुछ संरक्षित वन क्षेत्रों के सीमित क्षेत्र में केवल पृथक छोटे-छोटे खंडित आबादी के रूप में में मौजूद है।
- भारत में हॉग हिरण मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी से लगे तराई घास के मैदानों, जलमय भूमि वाले लंबे घास के मैदानों में तथा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के कछार में, पंजाब से अरुणाचल प्रदेश तक सीमित रूप से पाए जाते हैं।